आधुनिक कृषि का पर्यावरण पर प्रभाव (environmental impact of modern agriculture)
हालांकि हरितक्रांति से उत्पादन में अचानक वृद्धि हुई, परंतु कुछ दशकों से हरितक्रांति के पर्यावरण पर कुछ हानिकारक प्रभाव दिखाई दे रहे हैं। ये निम्नानुसार हैं -
1.कृषि में उपयोग किये जाने वाले रसायनों का जीवधारियों पर प्रभाव : हरित क्रांति के दौरान एवं उसके बाद लगातार खेतों में अनेक प्रकार की रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग अक्सर आवश्यकता से अधिक मात्रा में किया गया। इन रसायनों के अतिरिक्त छिड़काव ने पानी के साथ - साथ नदी, झील, तालाब एवं भूजल आदि को प्रदूषित एवं जलस्रोतों को संदूषित कर दिया है। अधिक मात्रा में खाद और कीटनाशकों के उपयोग से जमीन की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। कुछ कीटनाशक खाद्य श्रृंखला से स्थानांतरित होकर ऊपरी क्रम में जीवों में हानिकारक मात्रा में एकत्रित हो गये हैं।
2.कृषि विविधता की हानि : भारत में परंपरानुसार कृषक अनेक प्रकार के एक फसली अनाज बोते रहे हैं। ये फसलें स्थानीय जलवायु के साथ - साथ उनकी भोजन की आदतों और आवश्यकता के अनुकूल होती थीं। कहा जाता है, कि एक समय में देश में 22,000 से ज्यादा किस्म के चावल उपलब्ध थे। छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश के क्षेत्र विशेष रूप से चावल की अनेक किस्मों वाले क्षेत्र के रूप में जाने जाते थे। परंतु उच्च पैदावारी किस्मों के चलन ने विभिन्न किस्मों को चलन से बाहर कर दिया, और अंततः ये किस्में समाप्त ही हो गई। इस तरह अब अनेक किस्मों की जगह कुछ उच्च पैदावारी किस्में ही बची रह गई हैं। फसल की किस्मों को प्राप्त करने के लिए कृषि विविधता का बड़ा सग्रहण अनिवार्य आवश्यकता है। विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में संग्रहित कृषि विविधतास्थायी स्त्रोत के रूप में और नई किस्म के विकास में सहायक होती हैं।
3.जल का अत्यधिक उपयोग : हरितक्रांति में सिंचाई के लिए जल की व्यवस्था करना एक महत्वपूर्ण घटक था। विशेषकर धान वाले तथा ऐसे क्षेत्रों में भी जहाँ पर्याप्त जल उपलब्ध नहीं था में बड़ी नहरों अथवा भू जल दोहन कर सिंचाई की व्यवस्था की गयी। पानी के अधिक भराव से, विशेषकर नहर के पास के क्षेत्रों का लवणीकरण हो गया जिससे खेत खेती योग्य नहीं रहे।अत्याधिक जल के दोहन से भूजल का स्तर नीचे चला गया तथा भूजल दोहजन महंगा हो गया अथवा पानी की उपलब्धता ही समाप्त हो रही है।